ऐप
Home » जम्मू कश्मीर » जम्मू-कश्मीर: नई सरकार के सत्ता में आने के बाद भी सीमित रहेंगी उसकी शक्तियाँ
jammu-kashmir-new-government-faces-limitations-despite-election-victory

जम्मू-कश्मीर: नई सरकार के सत्ता में आने के बाद भी सीमित रहेंगी उसकी शक्तियाँ


प्रस्तावना

जम्मू-कश्मीर, जिसे भारत का ताज कहा जाता है, अपने प्राकृतिक सौंदर्य के साथ-साथ राजनीतिक संघर्षों के लिए भी जाना जाता है। धारा 370 के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में कई बदलाव हुए हैं, जिनका सीधा असर वहां की राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर पड़ा है। हाल ही में होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर कई राजनीतिक पार्टियां अपनी स्थिति मजबूत करने में लगी हुई हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि चुनाव जीतने के बाद भी क्या नई सरकार स्वतंत्र रूप से काम कर पाएगी, या फिर उसके हाथ बंधे रहेंगे?

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक परिदृश्य को समझने के लिए हमें इसके इतिहास पर एक नजर डालनी होगी। 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद जम्मू-कश्मीर एक विवादित क्षेत्र बन गया, जिसका हिस्सा पाकिस्तान और भारत दोनों ने चाहा। महाराजा हरि सिंह द्वारा भारत में विलय की संधि के बाद यह क्षेत्र भारत का अभिन्न हिस्सा बना, लेकिन विशेष दर्जा प्राप्त करने के लिए धारा 370 और 35A लागू की गईं। इन धाराओं के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष स्वायत्तता दी गई थी, लेकिन 2019 में केंद्र सरकार ने इन धाराओं को हटाते हुए इसे पूर्ण रूप से भारत का अभिन्न हिस्सा बना दिया।

धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक और प्रशासनिक बदलाव तो हुए, लेकिन इसके साथ ही चुनौतियां भी आईं। वहां की राजनीतिक पार्टियों का मानना था कि यह कदम लोगों की भावनाओं के खिलाफ है और इससे शांति की प्रक्रिया बाधित हो सकती है।

चुनावी परिदृश्य

जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनावों की चर्चा जोर-शोर से हो रही है। इस बार के चुनाव कई मायनों में विशेष होंगे, क्योंकि यह पहला चुनाव होगा जो धारा 370 हटने के बाद हो रहा है। केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार लोग अपनी नई सरकार चुनेंगे। मुख्य राजनीतिक दल जैसे नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अन्य पार्टियां इस चुनाव में प्रमुख भूमिका निभाने जा रही हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस और PDP जैसे क्षेत्रीय दलों की रणनीति केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध करके अपनी जगह बनाना है, जबकि बीजेपी का मुख्य एजेंडा विकास और शांति बहाल करना है।

नई सरकार के सामने चुनौतियाँ

  1. केंद्र का नियंत्रण: धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है, जिसका मतलब है कि यहाँ की सरकार को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं है। केंद्र सरकार का नियंत्रण जम्मू-कश्मीर के कई महत्वपूर्ण विषयों पर बना रहेगा, खासकर सुरक्षा और कानून-व्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर। नई सरकार को इन सीमाओं के भीतर काम करना होगा, जिससे उनकी कार्यक्षमता में कमी आ सकती है।
  2. सुरक्षा और आतंकवाद: जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद एक बड़ी समस्या रही है। नई सरकार को आतंकवाद से निपटने के लिए केंद्र सरकार के साथ मिलकर काम करना होगा। सीमावर्ती इलाकों में पाकिस्तान से होने वाली घुसपैठ और आतंकवादी गतिविधियों पर काबू पाना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती होगी। सरकार की सुरक्षा नीतियां काफी हद तक केंद्र सरकार पर निर्भर होंगी, इसलिए यहां भी नई सरकार की स्वतंत्रता सीमित रहेगी।
  3. राजनीतिक स्थिरता: जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना हमेशा एक कठिन कार्य रहा है। धारा 370 के हटने के बाद से क्षेत्र में राजनीतिक असंतोष बढ़ा है। कई क्षेत्रीय दल इस कदम के खिलाफ हैं और इसे लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ मानते हैं। इस माहौल में राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना नई सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
  4. आर्थिक विकास: जम्मू-कश्मीर में आर्थिक विकास की गति धीमी रही है। पर्यटन और कृषि इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के प्रमुख स्तंभ हैं, लेकिन हाल के वर्षों में पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सुरक्षा कारणों से और राजनीतिक अस्थिरता के चलते लोग यहां आने से कतराते हैं। नई सरकार को इस क्षेत्र में विकास को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजनाएं बनानी होंगी, लेकिन इसके लिए उन्हें केंद्र सरकार से आर्थिक मदद और नीति समर्थन की आवश्यकता होगी।
  5. धार्मिक और सांप्रदायिक सद्भाव: जम्मू-कश्मीर एक ऐसा क्षेत्र है जहां विभिन्न धर्मों और समुदायों के लोग रहते हैं। कश्मीरी पंडितों का मुद्दा भी एक बड़ा राजनीतिक और सामाजिक मुद्दा है। पंडित समुदाय की वापसी और पुनर्वास की योजना बनाना नई सरकार के सामने एक बड़ी चुनौती होगी। सांप्रदायिक सौहार्द्र बनाए रखना और विभिन्न समुदायों के बीच विश्वास बहाल करना सरकार के लिए एक कठिन कार्य होगा।

केंद्र सरकार की भूमिका

नई सरकार के हाथ क्यों बंधे रहेंगे, इसका एक प्रमुख कारण यह है कि जम्मू-कश्मीर अब एक केंद्र शासित प्रदेश है। धारा 370 हटने के बाद, जम्मू-कश्मीर में कई महत्वपूर्ण निर्णय केंद्र सरकार द्वारा लिए जाते हैं। यहाँ की सुरक्षा, विदेश नीति, और प्रमुख आर्थिक नीतियाँ अब केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आती हैं। इसका मतलब है कि भले ही विधानसभा चुनावों के बाद एक नई सरकार का गठन हो, लेकिन वह पूरी तरह से स्वतंत्र नहीं होगी।

केंद्र सरकार जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए कई प्रयास कर रही है, लेकिन इसका मतलब यह भी है कि स्थानीय सरकार की भूमिका सीमित हो जाती है। नई सरकार को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के तहत ही काम करना होगा, जो कि एक प्रकार से उनके हाथ बंधने के बराबर है।

जनभावनाएँ और लोकतंत्र

जम्मू-कश्मीर के लोग धारा 370 हटने से पहले और बाद की स्थितियों को लेकर विभाजित हैं। कई लोग धारा 370 को हटाए जाने का स्वागत करते हैं, क्योंकि इससे राज्य का विकास और राष्ट्रीय एकीकरण संभव हुआ है। वहीं, कुछ लोग इसे कश्मीरियत की पहचान के साथ धोखा मानते हैं। इस विभाजन के बीच नई सरकार को जनभावनाओं का सम्मान करना होगा, जो कि एक कठिन काम है।

लोकतंत्र की भावना को बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है। जम्मू-कश्मीर के लोग अपनी पहचान, संस्कृति, और विशेष अधिकारों की सुरक्षा चाहते हैं। नई सरकार को इन भावनाओं को समझना होगा और उनके अनुरूप नीतियाँ बनानी होंगी। हालांकि, केंद्र के नियंत्रण के कारण उनकी नीतियों में कुछ प्रतिबंध अवश्य रहेंगे।

कूटनीतिक पहलू

जम्मू-कश्मीर का मामला केवल भारत की आंतरिक राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका अंतरराष्ट्रीय महत्व भी है। पाकिस्तान द्वारा कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाया जाता रहा है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, और अन्य देशों की नजरें इस क्षेत्र पर टिकी रहती हैं। नई सरकार को इस बात का ध्यान रखना होगा कि उनके फैसले अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कैसे प्रभाव डालते हैं। इस संदर्भ में भी सरकार के हाथ बंधे रह सकते हैं, क्योंकि कूटनीति और विदेश नीति के विषय पूरी तरह से केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं।

निष्कर्ष

जम्मू-कश्मीर में चुनाव जीतने के बाद भी नई सरकार के सामने कई बाधाएं होंगी। क्षेत्र की विशेष स्थिति, सुरक्षा चुनौतियां, राजनीतिक अस्थिरता, और केंद्र सरकार का नियंत्रण नई सरकार की स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है। नई सरकार को अपनी योजनाओं को केंद्र सरकार के साथ सामंजस्य बनाकर ही लागू करना होगा। इस प्रकार, भले ही सरकार चुनाव जीतकर सत्ता में आ जाए, लेकिन उनकी शक्तियाँ और स्वतंत्रता सीमित रहेंगी, जिससे यह कहा जा सकता है कि नई सरकार के हाथ बंधे रहेंगे।

आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि किस प्रकार की राजनीतिक स्थिति उभरती है और सरकार इन चुनौतियों का सामना कैसे करती है। जम्मू-कश्मीर की जनता के लिए यह चुनाव उम्मीदों और चिंताओं का मिश्रण है, और नई सरकार के गठन के बाद ही यह स्पष्ट हो पाएगा कि किस दिशा में इस क्षेत्र का भविष्य जाएगा।


loader-image
Lucknow, IN
11:55 pm, Jul 3, 2025
temperature icon 30°C
mist
84 %
999 mb
9 mph
Wind Gust: 0 mph
Clouds: 40%
Visibility: 5 km
Sunrise: 5:16 am
Sunset: 7:04 pm
Hourly Forecast
2:30 am
temperature icon
29°/30°°C 0 mm 0% 7 mph 75% 999 mb 0 mm/h
5:30 am
temperature icon
30°/31°°C 0 mm 0% 7 mph 68% 999 mb 0 mm/h
8:30 am
temperature icon
33°/33°°C 0 mm 0% 13 mph 52% 999 mb 0 mm/h
11:30 am
temperature icon
37°/37°°C 0 mm 0% 9 mph 42% 998 mb 0 mm/h
2:30 pm
temperature icon
37°/37°°C 0 mm 0% 8 mph 41% 996 mb 0 mm/h
5:30 pm
temperature icon
32°/32°°C 0 mm 0% 8 mph 43% 995 mb 0 mm/h
8:30 pm
temperature icon
35°/35°°C 0 mm 0% 6 mph 48% 997 mb 0 mm/h
11:30 pm
temperature icon
34°/34°°C 0.2 mm 20% 6 mph 52% 998 mb 0 mm/h