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£68,373 का निवेश और £45 ट्रिलियन का ‘महालूट’ रिटर्न… ईस्ट इंडिया कंपनी ने कैसे किया भारत पर कब्जा


लंदन/नई दिल्ली: इतिहास में सबसे बड़े व्यापारिक साम्राज्यों में से एक, ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत पर कब्जा न केवल सैन्य शक्ति का उदाहरण था, बल्कि एक सुनियोजित आर्थिक और राजनीतिक रणनीति का परिणाम भी था। एक छोटे से व्यापारिक समूह के रूप में शुरू हुई इस कंपनी ने 1600 में £68,373 का प्रारंभिक निवेश किया था, लेकिन अगले कुछ सौ सालों में यह निवेश एक ऐसी साम्राज्यिक लूट में बदल गया, जिसने भारत की अपार धन संपदा को लगभग £45 ट्रिलियन तक लूटा।

कैसे हुई शुरुआत?

1600 में ब्रिटिश रानी एलिजाबेथ I द्वारा एक चार्टर जारी किया गया, जिसके तहत ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने का विशेषाधिकार मिला। उस समय कंपनी का उद्देश्य केवल मसाले, कपास और रेशम जैसे सामानों का व्यापार करना था। लेकिन धीरे-धीरे व्यापारिक हितों के साथ कंपनी ने राजनीतिक और सैन्य ताकत भी हासिल करनी शुरू कर दी।

प्लासी की लड़ाई: भारत पर कब्जे की पहली कड़ी

कंपनी का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 1757 में प्लासी की लड़ाई थी, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी ने नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर कब्जा कर लिया। इस जीत ने न सिर्फ कंपनी को बंगाल के राजस्व पर अधिकार दिया, बल्कि उसे भारत के अन्य हिस्सों में भी अपनी शक्ति बढ़ाने का मौका मिला। इसके बाद कंपनी ने भारत के विभिन्न हिस्सों पर धीरे-धीरे नियंत्रण स्थापित किया, जिसमें स्थानीय शासकों के बीच फूट डालना और उन्हें कमजोर करना शामिल था।

£68,373 का निवेश और £45 ट्रिलियन की लूट

ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रारंभिक निवेश, जो £68,373 था, उसने भारत की अपार संपदा पर कब्जा करके उसे कई गुना बढ़ा दिया। विभिन्न अनुमानों के अनुसार, कंपनी ने भारत से £45 ट्रिलियन से अधिक की संपत्ति लूटी, जिसमें सोना, चांदी, रत्न, मसाले और अन्य कीमती संसाधन शामिल थे। इसके अलावा, कंपनी ने भारतीय उद्योगों और कारीगरों को कमजोर किया, जिससे स्थानीय व्यापार और अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई।

भारत पर नियंत्रण: व्यापार से सत्ता तक का सफर

कंपनी ने भारत में व्यापारिक हितों से शुरू करके धीरे-धीरे प्रशासनिक और राजनीतिक नियंत्रण हासिल किया। स्थानीय शासकों से समझौते और युद्धों के माध्यम से कंपनी ने भारत के विशाल हिस्से पर कब्जा कर लिया। बंगाल, बिहार और उड़ीसा जैसे समृद्ध प्रदेशों का राजस्व सीधे कंपनी के हाथों में चला गया। इसके साथ ही, डिवाइड एंड रूल की नीति का इस्तेमाल करके कंपनी ने भारतीय शासकों को आपस में लड़ाया और उनकी कमजोरी का फायदा उठाकर अपनी स्थिति मजबूत की।

कंपनी का पतन और ब्रिटिश शासन की शुरुआत

1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बाद, ब्रिटिश सरकार ने ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक अधिकार छीन लिए, और 1858 में कंपनी का अंत हो गया। इसके बाद ब्रिटिश क्राउन ने सीधे भारत का शासन संभाल लिया, जिससे भारत ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया। लेकिन ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल ने भारत की आर्थिक और सामाजिक संरचना को भारी नुकसान पहुंचाया, जिसका प्रभाव भारतीय समाज पर लंबे समय तक रहा।

निष्कर्ष: लूट और शोषण का दौर

ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में प्रवेश व्यापार के रूप में हुआ, लेकिन जल्द ही यह लूट और शोषण का यंत्र बन गई। £68,373 के प्रारंभिक निवेश से शुरू हुई यह यात्रा £45 ट्रिलियन की संपदा लूटने तक पहुंची। यह इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने भारत की आर्थिक स्थिति को कमजोर किया और उसे औपनिवेशिक शोषण के लंबे दौर में धकेल दिया।


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